दिल्ली ब्लास्ट केस में राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (NMC) ने आतंकी गतिविधियों में शामिल चार डॉक्टरों का लाइसेंस रद्द कर मेडिकल रजिस्टर से नाम हटा दिया है। अब ये डॉक्टर भारत में कहीं भी मेडिकल प्रैक्टिस नहीं कर पाएंगे। प्रशासन की सख्ती ने मेडिकल वर्ल्ड और समाज में चिंता की लहर पैदा कर दी है, जिससे पेशेवर जिम्मेदारी और राष्ट्रीय सुरक्षा पर नई बहस शुरू हो गई है।

बीते 10 नवंबर को दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के पास एक कार में हुआ धमाका देश भर में सनसनी फैला गया,
जिसमें दर्जनों लोगों की मौत हुई थी। शुरुआती जांच में पुलिस ने पाया
कि इस धमाके में डॉक्टर उमर नबी सहित कई अन्य डॉक्टरों की संलिप्तता सामने आई।
यह केस देश की इकॉनमी और सुरक्षा के लिए बड़े खतरे की घंटी मानी गई।
डॉक्टर मॉड्यूल का खुलासा
जांच में चार डॉक्टरों—डॉ. मुजफ्फर अहमद, डॉ. अदील अहमद राथर, डॉ. मुज्जमिल शकील और डॉ. शाहीन सईद—की पहचान
आतंक के आरोपों में हुई है। यह सभी मेडिकल पेशे से जुड़े थे, लेकिन बरामद दस्तावेजों और पुलिस जांच में कितने ही आतंकी संगठनों
(जैसे जैश-ए-मोहम्मद, अंसार गजवात-उल-हिंद, आईएसआईएस) से इनका संपर्क सामने आया।
एनएमसी की कार्रवाई
राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (NMC) ने इन चार डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है।
अब ये डॉक्टर देश में कहीं पर भी मेडिकल प्रैक्टिस या नियुक्ति नहीं पा सकते।
यह फैसला प्रशासनिक और कानूनी मौकों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के तहत लिया गया है।
इनके नाम राष्ट्रीय मेडिकल रजिस्टर से भी हटा दिए गए हैं और राज्य परिषदों को इसकी सूचना दे दी गई है।
आतंक के सफेदपोश नेटवर्क पर बहस
इस केस ने समाज में ‘व्हाइट कॉलर टेरर’—इज्जतदार पेशेवरों के आतंक में शामिल होने के ट्रेंड—की बहस छेड़ दी है।
जांच एजेंसियों ने बताया कि ये डॉक्टर आतंकियों के लिए धन जुटाने, नेटवर्किंग और विस्फोटक तैयार करने जैसी भूमिकाओं में थे।
पूरे देश में यूपी, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, गुजरात आदि राज्यों में ऐसे संदिग्ध डॉक्टरों की तलाशी शुरू हो गई है।
जांच और प्रशासन का रुख
एनआईए, यूपी एटीएस, राज्य पुलिस समेत कई एजेंसियां आतंक मॉड्यूल की गहराई से पड़ताल कर रही हैं।
जांच में सामने आया कि इन डॉक्टरों का कनेक्शन पाकिस्तान और अन्य देशों में बैठै आतंकी सरगनाओं से था।
उनके फोन, सोशल मीडिया और बैंकिंग नेटवर्क की जाँच जारी है।
समाज में असर
मेडिकल पेशे में इस तरह की संलिप्तता ने लोगों में डर और चिंता फैला दी है।
मेडिकल जगत में पेशेवर जिम्मेदारी और सुरक्षा की नई बहस शुरू हो गई है।
सरकार और एनएमसी द्वारा की गई सख्त कार्रवाई पेशेवर जिम्मेदारी का संदेश देती है।
निष्कर्ष
दिल्ली ब्लास्ट केस ने साबित किया है कि आतंक के चंगुल में पेशेवर तबका भी फंस सकता है।
चार डॉक्टरों के लाइसेंस रद्द होने और गिरफ्तारी के ऐतिहासिक कदम ने देश में पेशेवर सुरक्षा और सतर्कता बढ़ाने का संकेत दिया है।





