वट सावित्री 2025: पति की लंबी उम्र और सुख-शांति के लिए मनाया जाने वाला पावन पर्व और उसकी धार्मिक महिमा!
वट सावित्री 2025: पति की लंबी उम्र और सुख-शांति के लिए मनाया जाने वाला पावन पर्व और उसकी धार्मिक महिमा!
वट सावित्री 2025 का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह पर्व हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है,
जो इस वर्ष 2025 में 29 मई को पडे़गा। वट सावित्री का पर्व विशेष रूप से भारतीय विवाहित महिलाओं द्वारा बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है।
इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
आइए जानते हैं इस पर्व के महत्व, पूजा विधि और मान्यताओं के बारे में विस्तार से।

वट सावित्री का धार्मिक महत्व

वट सावित्री का पर्व मुख्य रूप से पति-पत्नी के रिश्ते को सशक्त बनाने और
उनके बीच प्रेम व विश्वास की भावना को प्रगाढ़ करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।
यह दिन विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है,
जो अपने पति की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं।
वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करने का विशेष महत्व है,
क्योंकि यह वृक्ष न केवल सुख और समृद्धि का प्रतीक है
बल्कि यह परिवार की खुशहाली के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
वट सावित्री पूजा की विधि

#वट सावित्री के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर व्रत करती हैं
और विशेष रूप से वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
पूजा की प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम होते हैं:
स्नान और शुद्धता: पूजा से पहले महिलाएं स्नान करके शुद्ध होती हैं और स्वच्छ वस्त्र पहनती हैं।
वट वृक्ष की पूजा: सबसे पहले वट वृक्ष की पूजा की जाती है। इसे धूप, दीप, फूल, और अन्य पूजन सामग्री से सजाया जाता है।
सप्तपदी वाचन: पूजा के दौरान वट वृक्ष के नीचे बैठकर पति और पत्नी सात फेरे लेते हैं और सप्तपदी का वाचन करते हैं।
व्रत का पालन: महिलाएं पूरे दिन उपवासी रहती हैं और व्रत का पालन करती हैं।
कथा सुनना: इस दिन वट सावित्री की कथा सुनना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह कथा सावित्री और सत्यवान की प्रेरणादायक कहानी है, जो सत्य और धर्म के विजय का प्रतीक मानी जाती है।
वट सावित्री और सावित्री-सत्यवान की कथा

वट सावित्री की पूजा का आधार प्रसिद्ध सावित्री और सत्यवान की कथा है।
यह कथा एक पतिव्रता स्त्री की धैर्य और साहस को दर्शाती है,
जिसने अपने पति की मृत्यु के बाद उसे यमराज से वापस जीवन दिलवाया।
सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे यमराज से प्रार्थना की थी,
और अंततः सत्यवान को जीवनदान मिला। इस कथा के माध्यम से यह सिखाया जाता है
कि निष्ठा, सत्य और धर्म के मार्ग पर चलकर कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
वट सावित्री का सामाजिक महत्व

वट सावित्री न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह समाज में पारिवारिक रिश्तों की मजबूती को भी दर्शाता है।
इस दिन महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि और पति के अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं।
यह पर्व परिवार के बीच प्रेम और सद्भावना को बढ़ावा देने का कार्य करता है।
इसके अलावा, यह पर्व भारतीय संस्कृति में स्त्री की शक्ति और उसकी धार्मिक आस्थाओं को भी प्रदर्शित करता है।
वट सावित्री का पर्व भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
यह सिर्फ एक पूजा या पर्व नहीं, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है।

इस दिन किए गए व्रत और पूजा से न केवल पारिवारिक सुख-शांति की प्राप्ति होती है
, बल्कि यह हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी सहेजने का कार्य करता है।
वट सावित्री की कथा हमें यह सिखाती है कि सत्य, धर्म और प्रेम से सभी विघ्नों का नाश होता है
और जीवन में खुशहाली आती है।
वट सावित्री के इस पावन पर्व पर हम सभी को यही संदेश मिलता है कि जीवन में कठिनाइयां चाहे
जैसी भी हों, यदि हमारी नीयत सही हो और हम सच्चाई के मार्ग पर चलें,
तो कोई भी बाधा हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचने से नहीं रोक सकती।