Saptashrungi: नासिक के पास स्थित सप्तश्रृंगी देवी मंदिर का रहस्य और चमत्कारी कथाएं!
Saptashrungi: नासिक के पास स्थित सप्तश्रृंगी देवी मंदिर का रहस्य और चमत्कारी कथाएं!
Saptashrungi: सप्तश्रृंगी देवी मंदिर महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यह मंदिर सात पहाड़ियों के बीच स्थित है और माता दुर्गा के शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहाँ की 500 सीढ़ियाँ चढ़कर भक्त देवी के दर्शन करने पहुँचते हैं। प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक शांति का यह स्थान श्रद्धालुओं को अद्भुत अनुभव प्रदान करता है।
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#Saptashrungi का महत्व
महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित सप्तश्रृंगी देवी मंदिर शक्ति और भक्ति का प्रमुख केंद्र है।
यह मंदिर माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
यहाँ देवी दुर्गा की Saptashrungi रूप में पूजा होती है, जो अपने 18 हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं।
Saptashrungi का भूगोल और स्थान
यह मंदिर नासिक से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर वणी गाँव में स्थित है
और समुद्र तल से 4,800 फीट की ऊँचाई पर सात चोटियों के बीच बसा हुआ है।
इन्हीं सात चोटियों के कारण इसे “सप्तश्रृंगी” कहा जाता है। चारों ओर हरियाली और पर्वतों की श्रृंखलाएँ इस स्थान को और भी रमणीय बनाती हैं।
मंदिर तक पहुँचने का मार्ग
सड़क मार्ग: निजी वाहन और बस सेवा
नासिक से वणी के लिए नियमित बस सेवाएँ और टैक्सी उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग से यात्रा में लगभग 2 घंटे का समय लगता है। यदि आप अपनी गाड़ी से जा रहे हैं तो रास्ते में कई दर्शनीय स्थल मिलते हैं।
रेल और हवाई मार्ग
नासिक रेलवे स्टेशन और ओझार एयरपोर्ट सबसे नजदीकी रेल और हवाई ठिकाने हैं।
यहाँ से टैक्सी के माध्यम से मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।
मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ और रोपवे सेवा
सप्तश्रृंगी मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्तों को लगभग 500 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।
हालाँकि, वरिष्ठ नागरिकों और बच्चों के लिए रोपवे सेवा भी उपलब्ध है, जो इस यात्रा को आसान बनाती है।
रोपवे से यात्रा करते समय आसपास के पहाड़ों और जंगलों का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है।
मंदिर की स्थापत्य कला और मूर्ति
मंदिर की मूर्ति करीब 10 फीट ऊँची है और प्राकृतिक चट्टान पर बनी हुई है।
देवी के 18 हाथों में विभिन्न हथियार और आशीर्वाद देने की मुद्रा में हैं।
यहाँ का गर्भगृह और मूर्ति का श्रृंगार श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देता है।
नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष पूजा और भंडारे का आयोजन होता है।
सप्तश्रृंगी मंदिर की पौराणिक कथा
कथाओं के अनुसार, देवी ने महिषासुर का वध करने के लिए इसी स्थान पर अवतार लिया था।
इसीलिए उन्हें “महिषासुर मर्दिनी” भी कहा जाता है।
मान्यता है कि यहाँ माता की आराधना से सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
मंदिर के पास दर्शनीय स्थल
सप्तश्रृंग गढ़: ऐतिहासिक किला
मंदिर के निकट ही स्थित यह किला छत्रपति शिवाजी महाराज और पेशवाओं के समय का है।
यहाँ से आसपास की घाटियाँ और पहाड़ों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
नंदूरी और देवी की गुफाएँ
नंदूरी गाँव के पास प्राचीन गुफाएँ हैं, जहाँ शिलालेख और मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं।
ये गुफाएँ बौद्ध काल की मानी जाती हैं और इतिहास प्रेमियों के लिए खास आकर्षण हैं।
सप्तश्रृंगी यात्रा के दौरान आवश्यक बातें
मौसम: यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सर्वोत्तम माना जाता है। इस दौरान यहाँ का मौसम सुहावना रहता है।
प्रसाद और भंडारा: मंदिर परिसर में प्रसाद की दुकानें और भंडारे की सुविधा उपलब्ध है।
आवास: वणी में कई धर्मशालाएँ और होटल हैं जहाँ आप ठहर सकते हैं। अग्रिम बुकिंग कराने पर सुविधा मिलती है।
सप्तश्रृंगी देवी मंदिर न केवल एक आस्था का केंद्र है, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और इतिहास के शौकीनों के लिए भी अद्वितीय स्थान है।
यहाँ का दिव्य वातावरण और पर्वतों का सौंदर्य आपके मन को शांति और आनंद से भर देगा।
अगर आप महाराष्ट्र की यात्रा पर हैं, तो सप्तश्रृंगी देवी का आशीर्वाद लेना न भूलें!